Friday, April 9, 2010

.अपनापन

.........अपनापन............

उनके दर्द को मै तब जान ना पाया,
चाहत थी उनके दिल मे जिनके लिये ,
उन्ही आंखो ने उन्हे पहचान न पाया ।
सोचता था मै जिसे उनका गुरुर ,
अब मालुम हुआ कि, वो कितने थे मजबूर ।
उनके दिल मे थे जो गम,
उनका हमे एहसास नही था,
उनकी खामोस दुआओ का,
तब मन को आभास नही था ।
एक संघर्स थी उनके जिन्दगी की डगर,
चले जिसपे हरपल होकर वो निडर,
कितने उपवन को सिचा उनकी बाजुओ ने,
फिर भी बिरान था उनका अपना शहर ।

1 comment:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।